हरियाणा प्रदेश के 56 फीसदी सरकारी कॉलेजों में प्रिंसिपल नहीं हैं। प्रदेश के कुल 184 काॅलेजों में से 104 काॅलेजो में प्रिंसिपल नहीं हैं। काम चलाने के लिए सहायक प्रोफेसरों को अतिरिक्त कार्यभार दिया गया है।
उच्चतर शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली के चलते यह पद खाली हैं। लंबे समय से न तो सहायक प्रोफेसरों की पदोन्नति हुई है और न ही प्रिंसिपल के पदों पर सीधी भर्ती हो पाई है। इसका नतीजा ये है कि पिछले कई साल से काॅलेजों को मुखिया नहीं मिल रहे हैं और काॅलेजों में विद्यार्थियों की संख्या लगातार घट रही है।
उच्चतर शिक्षा विभाग में काॅलेज प्रिंसिपल के लिए 75 फीसदी पद पदोन्नति से भरे जाते हैं, जबकि 25 फीसदी पदों को सीधी भर्ती से भरा जाता है। काॅलेज शिक्षकों का कहना है कि 2013 के बाद से विभाग की ओर से प्रिंसिपल की सीधी भर्ती नहीं की गई है। इससे पहले 25 फीसदी पदों को सीधी भर्ती से भरा जाता था और शेष पदों को पदोन्नति से भरा जाता था। सीधी भर्ती को लेकर उच्चतर शिक्षा विभाग की ओर से कई बार कोशिशें की गईं, लेकिन प्रस्ताव ठंडे बस्ते में ही रहे। इसलिए हरियाणा लोक सेवा आयोग (एचपीएससी) के पास प्रिंसिपल पदों की भर्ती की मांग ही नहीं हुई है। सूत्रों का दावा कि यूजीसी द्वारा तय किए नए मानकों को लेकर उच्चतर शिक्षा विभाग नियमों में संशोधन नहीं कर पाया है, जिसके चलते यह भर्ती अटकी हुई है।
काॅलेज में प्रिंसिपल सबसे अहम पद होता है। इसकी जिम्मेदारी काॅलेज में शैक्षणिक और गैर शैक्षणिक कार्यों की होती है। साथ ही पढ़ाई को लेकर शेड्यूल तैयार करने समेत निगरानी का जिम्मा भी होता है। इनके अलावा, अन्य गतिविधियों से लेकर प्रदेश और केंद्र की योजनाओं को भी लागू कराना होता है। चूंकि सहायक प्रोफेसरों में से ही किसी को अतिरिक्त कार्यभार दिया जा रहा है, ऐसे में संबंधित विषय के विद्यार्थियों की पढ़ाई बाधित होना तय है। दूसरा प्रिंसिपल नहीं होने से काॅलेजों में गुटबाजी भी बढ़ती है और साथ के ही स्टाफ से काम लेना अस्थायी प्रिंसिपल के लिए आसान नहीं है।