पंजाब में सेना में भर्ती हुए एक व्यक्ति को ट्रेनिंग के दौरान ट्रेनर ने थप्पड़ मारा। इससे शख्स के कान में चोट लगी और वह सेना में भर्ती के अयोग्य हो गए। सेना के अधिकारी की गलती की सजा उसे भुगतनी पड़ी। लेकिन उसने हार नहीं मानी और पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट में याचिका दायर की। उसे न्याय का इंतजार था लेकिन 50 साल हो गए केस में कोई फैसला नहीं आया और उनकी मौत हो गई। इस केस में याचिकाकर्ता की पत्नी ने आगे लड़ा और अब 61 साल बाद केस में फैसला आया है। हाई कोर्ट ने शख्स को विकलांगता पेंशन का हकदार माना और अधिकारियों को उनकी विधवा को पेंशन का भुगतान करने का आदेश दिया है।
न्यायमूर्ति सुरेश्वर ठाकुर और न्यायमूर्ति सुदीप्ति शर्मा की खंडपीठ ने पूर्व सैनिक की विधवा कोशिल्या की दायर याचिका पर आदेश दिया।
हाई कोर्ट ने माना कि अधिकारियों ने जनवरी 1964 में उसे सेना से मुक्त करते समय उसे पेंशन से वंचित करने के लिए एक डायग्नॉस्टिक नोट गढ़ा था। जिससे ‘यह निष्कर्ष निकाला गया है कि विचाराधीन नैदानिक नोट सैनिक के भर्ती होने के साथ ही नहीं बनाए गए थे, बल्कि सैनिक को उसकी विकलांगता की गंभीरता के बावजूद उसकी सही विकलांगता पेंशन से वंचित करने के लिए गढ़े गए थे।’
सेना के अनुसार, यह व्यक्ति 5 अक्टूबर, 1963 को सेना में भर्ती हुआ था। प्रशिक्षण के दौरान, उसे विकलांगता, सीएसओएम का पता चला और 26 जनवरी, 1964 को उसे सेवा से बाहर कर दिया गया। उसकी विकलांगता का मूल्यांकन जीवन भर के लिए 40% किया गया था।
विकलांगता पेंशन के लिए उसके दावे को इस आधार पर अस्वीकार कर दिया गया कि विकलांगता न तो सैन्य सेवा के कारण थी और न ही उससे बढ़ी थी। 23 मई, 2016 को उसकी मृत्यु हो गई, जिसके बाद उसकी विधवा ने मामले को आगे बढ़ाया।
अपनी याचिका में, उसने आरोप लगाया कि उसके प्रशिक्षण प्रशिक्षक ने उसके पति के कानों पर जोरदार थप्पड़ मारा। इस एक थप्पड़ के कारण उसे कुछ श्रवण दोष और विकलांगता का सामना करना पड़ा। लेकिन सेना के एक विभाग ने अक्टूबर 2016 में उसके दावे को खारिज कर दिया और पेंशन के लिए उसकी अपील को खारिज कर दिया।
हाई कोर्ट ने सुनाया फैसला
हाई कोर्ट ने कहा कि कॉलम संख्या 3 में हाथ से लिखे एक अंग्रेजी नोट से संदेह बढ़ा। यह अंग्रेजी में लिखा गया था, जबकि सैनिक ने फॉर्म में हिंदी में हस्ताक्षर किए थे। जांच के माध्यम से इन विसंगतियों को स्पष्ट किया जा सकता था। इसके बावजूद, कोई कार्रवाई नहीं की गई, जबकि याचिकाकर्ता के पति ने दावा किया कि प्रशिक्षण कमांडर ने उसके दाहिने कान पर थप्पड़ मारा था और संबंधित कॉलम में एक ताजा घाव का उल्लेख किया गया था। हाई कोर्ट ने उस आदेश को रद्द कर दिया जिसके माध्यम से पेंशन को खारिज कर दिया गया था। बेंच ने अधिकारियों को याचिकाकर्ता को उसके पति की मृत्यु की तारीख से पारिवारिक पेंशन देने का निर्देश दिया।