एससी/एसटी आरक्षण में उपवर्गीकरण की अनुमति देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के जवाब में आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति ने 21 अगस्त, 2024 को देशव्यापी भारत बंद का आह्वान किया है। भारत बंद को विशेष रूप से राजस्थान राज्य में विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक संगठनों द्वारा समर्थन दिया गया था। कई राज्यों, विशेषकर पश्चिमी राज्य उत्तर प्रदेश में, पुलिस कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए हाई अलर्ट पर है। हड़ताल के दौरान आपातकालीन सेवाएं चालू रहेंगी।
राजस्थान में सुबह बंद का मिलाजुला असर रहा, जयपुर और अजमेर समेत कई शहरों में शिक्षण संस्थान बंद कर दिए गए हैं| यातायात भी सामान्य से धीमा है। भाजपा नेता डाॅ. किरोड़ीलाल मीणा ने एक बार फिर विपक्ष की आलोचना की, मीणा ने कहा कि कुछ लोग एससी-एसटी को गुमराह कर रहे हैं| वहीं, संयुक्त जाति एवं जनजाति संघर्ष समिति ने भी बंद की सफलता के लिए 25 टीमों का गठन किया है| मंगलवार को 16 जिलों में आज के लिए स्कूलों की छुट्टियां घोषित कर दी गईं थी, भरतपुर में भी सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक इंटरनेट बंद रहेगा|
कौन- कौन शहर हैं बंद?
बता दें कि भारत बंद को मध्य नज़र रखते हुए जयपुर, सीकर, अलवर, दौसा, सवाई माधोपुर, डीग, जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, टोंक, भीलवाड़ा, नीमकाथाना, कोटा, श्रीगंगानगर, चित्तौड़गढ़ और भरतपुर में सभी शैक्षणिक संस्थान और स्कूलों- विश्वविद्यालयों में छुट्टियाँ घोषित कर दी गई हैं। कोटा, शेखावाटी और मत्स्य विश्वविद्यालय की परीक्षाएं भी स्थगित कर दी गई हैं|
इंटरनेट सेवा पर रोक
भरतपुर संभागीय आयुक्त सांवरमल वर्मा के आदेशानुसार सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक इंटरनेट बंद रहेगा,वहीं दूसरी ओर गंगापुर जिले के टोडाभीम में सरकारी स्कूल,विशनपुरा के 12 शिक्षकों ने 21 अगस्त को छुट्टी की मांग करते हुए सीबीईओ (टोडाभीम) को एक सामूहिक आवेदन प्रस्तुत किया।बता दें उन्होंने भारत बंद का समर्थन करने की अनुमति के लिए आवेदन किया। कोटा के अलावा जयपुर के फुलेरा, चंदवाजी, रेनवाल और अचरोल में भी शराब की दुकानें बंद रहेंगी|
भारत बंद करने का उद्देश्य
राज्यों को एससी और एसटी आरक्षण में उप-श्रेणियां बनाने की अनुमति देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का कड़ा विरोध हुआ है। कई लोगों का मानना है कि यह निर्णय संभावित रूप से कुछ समूहों को आरक्षण के उचित हिस्से से वंचित करके सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को कमजोर करता है। भारत बंद का उद्देश्य इस फैसले को चुनौती देना और इसे वापस लेने की मांग करना है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि एससी/एसटी समुदाय के सभी वर्गों को समान लाभ मिलता रहे।